Basic Accounting Glossary : हेलो प्यारे पाठको इससे पिछले लेख में मैंने आपको लेखांकन की विधियां और भारतीय बहीखाता प्रणालियों के बारे में विस्तार से बताया था। आज इस पोस्ट में मैं आपको दोहरा लेखा प्रणाली की विभिन्न अवस्थाएं और लेखांकन की आधारभूत शब्दावली के बारे में बताऊंगा।

आधारभूत शब्दावली का मतलब है कि वर्तमान वर्तमान समय में लेखांकन यानी एकाउंट्स के लिए प्रयोग किए जाने वाले शब्द। अगर दोस्तों आप कुछ सीख रहे हैं और आपको बहुत कुछ समझ आ रहा है तो इसी तरह हमारे साथ बने रहिए। चलिए बात करते हैं इस आर्टिकल के टॉपिक पर।
लेखांकन की यह थ्योरी एक अकाउंटेंट के लिए बहुत इंपोर्टेंट होती है क्योंकि आदमी एक सक्सेसफुलअकाउंटेंट तभी बन पाता है जब उसको एकाउंट्स के नियम और उसकी विधियों की गहराई से जानकारी हो। अगर आप चाहते हैं एक सक्सेसफुल अकाउंटेंट बनना तो आपको एकाउंट्स की गाइडलाइन को बहुत ही गहराई से समझने की आवश्यकता है।
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दोहरा लेखा प्रणाली की विभिन्न अवस्थाएं
दोहरा लेखा प्रणाली वैज्ञानिक है क्योंकि इस प्रणाली में लेखांकन प्रक्रिया निर्धारित सिद्धांतों के आधार पर नियमों का पालन करते हुए पूरी की जाती है। इसलिए इस प्रणाली के नियम और सिद्धांतों पर और करने की जरूरत है।
- प्रारंभिक लेखा –
व्यवसाय में होने वाले प्रत्येक व्यवहार को अनिवार्यतः प्रारंभिक लेखा पुस्तक में दर्ज किया जाता है। लेखक की पुस्तक किस प्रकार की है यह व्यवसाय की पूंजी एवं स्वरूप पर निर्भर करता है। छोटे बिजनेस के लिए एक लेखा पुस्तक ही पर्याप्त मानी जाती है। जबकि माध्यम और वृहत व्यवसाय जर्नल की विभिन्न बहीयों जैसे क्रय बही,विक्रय बही, क्रय वापसी बही, विक्रय वापसी बही, प्रयाप्य बिल बही, रोकड़ बही एवं मुख्य जर्नल में उपविभाजन किया जाता है।
- वर्गीकरण एवं खतौनी –
यह जाना भी आवश्यक है कि व्यवसाय में कुल क्रय विक्रय, क्रय वापसी, विक्रय वापसी, देनदारी व लेनदारी, आय व्यय की मदें, रोकड़ शेष इत्यादि की स्थिति क्या है। इसे जानने के लिए समस्त विभागों का नियमानुसार मदवार पृथकीकरण कर दिया जाता है। दोहरा लेखा प्रणाली में खाता बही प्रमुख पुस्तक होती है यानी प्रत्येक मद का एक अलग खाता तैयार किया जाता है।
सारांश लेखन एवं अंतिम खाते तैयार करना
प्रारंभिक लेखांकन तथा वर्गीकरण में सभी व्यवहारों का अभिलेखन तथा उनका माहवार विभाजन किया जाता है। खाता बही प्रारंभिक लेखों की प्रमुख पुस्तक होने के बावजूद भी व्यवसाय के सत्रांक में लाभ हानि की स्थिति और आर्थिक स्थिति का ज्ञान नहीं करा पाती है।
इसके लिए लेखा का वर्षांत में खाता बही की सहायता तलपट तैयार कर के खाता बही की गणितात्मक शुद्धता की जांच करते हुए business account, loss and profit account, की balance sheet बनाकर लाभ हानि तथा स्थिति की जानकारी प्राप्त करते हैं। इस प्रक्रिया को सारांश लेखन प्रक्रिया कहा जाता है।
पूंजी (Capital) –
बिजनेसमैन यानी व्यापार के स्वामी द्वारा बिजनेस में लगाई जाने वाली राशि को ही पूंजी कहते हैं।
आहरण (Drawings) –
व्यापार के स्वामी के द्वारा अपने खुद के कार्य के लिए व्यापार से नगद संपत्ति या माल को उपयोग में लेना आहरण कहा जाता है। आहरण से सदैव पूंजी में कमी आती है। यदि बिजनेस के रुपयों से निजी खर्चों का भुगतान किया जाता है तो यह भी आहरण माना जाएगा।
देयताएं (Equities) –
संपत्ति के अधिकार या इसके विरुद्ध सभी दावे देयताएं हैं चाहे वह लेनदारों की ओर से हो या खुद व्यापार के ऑनर की और से हों।
संपत्तियां (Assets) –
व्यवसाय में विद्यमान मूर्त या अमूर्त अधिकार जिनका व्यवसाय के स्वामी के लिए आर्थिक मूल्य हो अर्थात यह धन के वह स्रोत हैं जो सदैव लाभ प्रदान करते हैं। संपत्तियों के भी कई प्रकार होते हैं जिनको मैं यहां पर डिटेल से बता रहा हूं।
दृश्य संपत्ति (Tangible) –
ऐसी संपत्तियां जिन का भौतिक स्वरूप हो जिन्हें देखा और पहचाना जा सकता है। दृश्य संपत्ति कहलाती है इन्हें मूर्त संपत्तियों के नाम से भी जाना जाता है। For example: building, मशीन, कंप्यूटर, मोटर, गाड़ी आदि।
अदृश्य संपत्ति (Intangible) –
ऐसी संपत्तियां जिनका भौतिक स्वरूप व आधार ना हो तथा इन्हें ना तो छुआ जा सके और ना ही इन्हें देखा और पहचाना जा सकता हो ऐसी संपत्तियां अदृश्य संपत्ति कहलाती हैं। इन्हें अमूर्त संपत्तियों के नाम से भी जाना जाता है। For example: ख्याति, अधिकार, व्यापार चिन्ह (buisness logo), प्रशासन अधिकारी आदि।
चल संपत्ति (Floating) –
ऐसी संपत्तियां जो एक लेखांकन अवधि सामान्यतः 1 वर्ष में नगद में परिवर्तित हो जाती हैं चल संपत्तियां कहलाती हैं। इन्हें परिवर्तनशील अस्थाई चालू संपत्तियां भी कहते हैं। For example: रोकड़ शेष, देनदार, स्टॉक आदि।
अचल संपत्ति (fixed) –
लाभार्जन क्षमता में वृद्धि करने एवं भावी उत्पादन एवं सेवाएं प्रदान करने के लिए जिन संपत्तियों को क्रय किया जाता है उन्हें अचल संपत्तियां कहते हैं। For example: भवन (building), मशीन (machine), फर्नीचर (furniture) आदि।
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तरल संपत्ति (Liquid) –
ऐसी संपतिया जिन्हें शीघ्र रोपण में बदला जा सकता है तरल संपत्तियां कहलाती हैं। For example: stock, cash, bank balance, debtors etc.
क्षैई संपत्ति (Wasting) –
ऐसी संपत्तियां जिनका निरंतर प्रयोग करने से एक निश्चित समय पश्चात अस्तित्व या भौतिक स्वरूप समाप्त हो जाता है क्षैई संपत्तियां कहलाती हैं। For example: खनिज व पत्थर की खाने, तेल के कुएं आदि।
दायित्व (Liabilities) –
ऐसी राशियां जो बाहरी पक्षकारों को चुकानी हो दायित्व कहलाती हैं।इसमें माल के उधार क्रय से सम्बंधित लेनदार, ऋण से सम्बंधित लेनदार एवं व्ययों के लिए लेनदार सम्मलित हैं।
इस लेख हमने आपको सिर्फ कुछ ही आधारभूत लेखांकन शब्दावली के बारे बताया है अगर आप Basic Accounting Glossary के बारे में और पढ़ना चाहते हैं तो हमारी दूसरी पोस्ट को फॉलो करें। जानकारी पसंद आ रही हैं तो न्यूज़लेटर को सब्सक्राइब करके इससे आपको ईमेल के माध्यम हमारी आने वाली नई पोस्ट का पता चल जाएगा।
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